Sunday 29 September 2013

Barasti Zindagi by Ravindra Arora...

एक पत्थर भीगता था रात भर

एक बारिश सोख डाली रात ने

एक बादल ओढ़ जागी जब सुबह


धुल चुका था सब गयी बरसात में

जागती थी रात भर बरसात भी

ऊंघता था मै भी कुछ बेहोश सा

घर की सारी खिड़कियाँ तो बंद थी

किस तरह भीगा ये सिरहाना मेरा?

आज छत खामोश है मै रंज में

देख सकता हूँ निशाँ जाते कदम

लौट कर आएगी अब ना रौशनी

अब अँधेरा ही रहेगा बे-शुमार

घिर गया हूँ क़ैद हूँ बेनूर हूँ

बिन तेरे,.. आका,.. बहुत मजबूर हूँ

खैर मख्दम ओ बरसती ज़िन्दगी

बहते पानी,..है तेरा भी शुक्रिया!!

है कोई वजह कि ढलती शाम भी,..

कोई कारण,..फिर सुबह भी होती है

देख ले भर आँख जितना बन सके,..

एक दिन बह जायेंगे रस्ते तमाम !!!...By Ravindra Arora

https://soundcloud.com/pendyala-pradeep/barasti-zindagee-by-ravindra

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