Saturday 19 April 2014

Tapti Raahen

तुम्हें आंकना था किसी कोरेपन से
किसी अन छुए कच्चे पत्ते के तन पे
किसी दूब की नोक से था छुलाना
किसी ओस की बूँद से था भिगाना

मगर तुम कहाँ मिल सकोगी अजाने 
वो अनजान पगडंडियां मिट गयी हैं
जिन्हें नाजुकी याद थी पगथली की
वो यादों के जंगल में गुम हो गयी हैं

वो बीते पलों को जो देती थी रस्ता
वो काफूर सी साँसों की खुश्बू हुई है
मगर आँखें फिर भी कभी बेखुदी में
तुम्हें तपती राहों पे देखें हैं अब भी...Ravindra Arora
https://soundcloud.com/pendyala-pradeep/tapti-raahen
Tapti Raahen...
तुम्हें आंकना था किसी कोरेपन से किसी अन छुए कच्चे पत्ते के तन पे किसी दूब की नोक से था छुलाना किसी ओस की बूँद से था भिगाना मगर तुम कहाँ मिल सको...

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