Wednesday 27 August 2014

याद आती हैं बहुत ..वो छुट्टियाँ .. गर्मियों की

तारों सजी रातें ...... तमतमाती दुपहरियों की
याद आती हैं बहुत ..वो छुट्टियाँ .. गर्मियों की

अधखिले, नाजुक, .. कच्चे थे हम
झूठ बोलते थे पर ... सच्चे थे हम
थोड़े से बुरे .... थोड़े अच्छे थे हम
वो दौर था ...... जब बच्चे थे हम
चढ़ते पारे के साथ मौसम गरमाने लगता था
आहट ग्रीष्म की ..... बसंत जाने लगता था
दिन चढ़ते चढ़ते आँगन तमतमाने लगता था
करीब है दिन छुट्टियों के .... बताने लगता था
खुल जाते थे दिल-ओ-दिमाग, स्कूल बंद होते थे
सच ! वो दिन ............ हमें बहुत पसंद होते थे

चलो करते है ज़िक्र उन तमाम .. मस्तियों की
याद आती हैं बहुत ..वो छुट्टियाँ .. गर्मियों की

शिकंजी, निम्बू-पानी .. पना के दिन
रंगीन .... रस भरे .... रसना के दिन
पांच दस पैसे की .... ‘बर्फ़ की कैंडी’ थी
‘ऑरेंज-बार’ भी न ज्यादा .. महंगी थी
गली से जब ..... आइसक्रीम वाला गुजरता था
थोड़ा मुस्कुराकर दादी का बटुआ निकलता था
रेतकर मिलते थे .... वो गोले बरफ के
रंगीन चाशनी में .. नज़ारे हर तरफ़ के
मिठास न पूछिए उन चुस्कियों की
मटकी में बिकती उन कुल्फियों की

बगैर मिक्सी, .. मथनी वाली .. लस्सियों की
याद आती हैं बहुत . वो छुट्टियाँ .. गर्मियों की

कितनी लुभावनी थी वो दुनिया कॉमिक्स की
बेताल डायना .... लोथार मैनड्रैक की
हर किरदार ...... सच्चा और अपना लगता था
मिलना ‘चाचा चौधरी साबू’ से अच्छा लगता था
ऐतिहासिक पौराणिक गाथाओं मिलना शुरू हुए हम
‘अमर चित्र कथाओं’ से जब रुबरु हुए हम
लोटपोट, मधु-मुस्कान के पन्ने
चंपक, नंदन, चंदा-मामा सब अपने
‘बिल्लू’, ‘डब्बू जी’ .. ‘श्रीमतीजी’ के किरदार
आप बतायें कौन नहीं करता था इनसे प्यार
जासूसी नावेल भी कुछ कमाल के थे
फैन हम तब .. राजन इकबाल के थे

किस्से क्या सुनाएँ ..... अब उन कहानियों की
याद आती हैं बहुत .. वो छुट्टियाँ .. गर्मियों की

पाठ, .. सबक और न कोई उसूल होते थे
लंबी छुट्टियों के लिए बंद .. स्कूल होते थे
पलट के देखा .. हुए मुखातिब .. हम गुज़रे पलों से
इन दिनों ही मिलते थे हम मामा-मौसी के बच्चों से
निजात मिल चुकी होती थी इम्तिहान के पर्चों से
न कमाई की चिंता .. न सरोकार खर्चों से
उत्पात, शैतानियाँ वो छोटी-बड़ी हमारी
न पूछिए ...... वो धमा-चौकड़ी हमारी
नाक में दम कर देते थे नाना नानियों की
इन्तिहाँ हो जाती थी ....... नादानियों की

फिर पिटाई, डांट डपट ..... पापा-मम्मियों की
याद आती हैं बहुत .. वो छुट्टियाँ .. गर्मियों की

वाकिफ उस दौरान ‘लूडो’, ‘सांप-सीढ़ी’ से हुए
सीखकर बड़े इसी तरह पिछली पीढ़ी से हुए
कैरम, शतरंज, वो खेल .. ताश के
कोट-पीस, रमी, 'तीन-दो-पांच' के
लुका-छिपी और वो खेल ‘खो-खो’ का
हाथ के पंखे, टेबुल फैन के झोंकों का
किताबें सेल्फ में ... न रोज़ रोज़ का स्कूल था
तालाब वो गाँव का .. हमारा स्विमिंग पूल था
तैरती तस्वीर आँखों में उन डुबकियों की
प्यास बुझाती मटकों, घड़ों, सुराहियों की

चढ़ कर पेड़ पर चखते ........ उन अमियों की
याद आती हैं बहुत .. वो छुट्टियाँ .. गर्मियों की

शामें दूरदर्शन की .. वो रेडियो के दिन
बात न होगी मुकम्मल ... ये कहे बिन
‘हवामहल’, ‘जयमाला’, वो ‘भूले बिसरे गीत’
जिनसे जुड़ा है .. हमारा कल, हमारा अतीत
छत पे बैठकर .. ‘छाया-गीत’ के नगमें
गुज़रे वक़्त में सुने होंगे ... आप सबने ?
आवाज़ ‘अमीन सयानी’ की बाँध देती थी समां
याद कीजिये ‘एस कुमार का ‘फ़िल्मी मुकदमा’
‘मोदी के मतवाले राही’, ‘इंस्पेक्टर ईगल’
क्या क्या करें बातें .. क्या क्या करें गल
रात वो ..... पौने नौ का समाचार
हफ्ते में फ़क़त एक दिन चित्रहार
शुरुआत थी धारावहिको के प्रयोग की
बात क्यों न छिड़े फिर ‘हमलोग’ की
वही ‘बुनियाद’ थी ..... नई सोच की

बातें बहुत हो गई आज .. पुराने टीवी रेडियो की
याद आती हैं बहुत .. वो छुट्टियाँ ... गर्मियों की

उन दिनों साहित्य से परिचय हो रहा था
बुनियाद मुस्तकबिल का तय हो रहा था
‘धर्मयुग’ ‘माधुरी’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’
‘सरिता’, ‘मुक्ता’, ‘मनोरमा’, ‘दिनमान’
इलस्ट्रेटेड वीकली, ब्लिट्ज पॉपुलर हुआ करते थे
पड़ोसी एक दूजे से ........ मांग कर पढ़ा करते थे
एक पकड़ थी इन पत्र-पत्रिकाओं, रिसालों में
सच ! .......... बड़ी बरक़त थी उन सालों में
घर पे सजती पिताजी की ... वो साहित्यिक बैठकें
उन अदबी नशिस्त, गोष्ठियों के बारे में क्या कहें
आध्यात्मिक, राजनैतिक चर्चे हुआ करते थे
समझते .. तो कम थे ..... पर सुना करते थे
घर की लाइब्रेरी में मैथली, महादेवी, ... प्रेमचंद थे
दिनकर, निराला, सुमित्रा, सुभद्रा सब हमें पसंद थे
इन्हीं दौरान मुलाक़ात .. ‘मीर-ओ-मजाज़’ से हुई
ग़ालिब, दुष्यंत, फ़िराक, ‘फैज़-ओ-फ़राज़’ से हुई
जैसे 'बीते हुए कल' की …... आज से हुई
शुरुआत मेरी बीमारी की .. इलाज से हुई

टूटी-फूटी शायरी ... उन बेतुकी तुकबंदियों की
याद आती हैं बहुत .. वो छुट्टियाँ .. गर्मियों की

~ . ~ . ~ . अमित हर्ष . ~ . ~ .Amit Harsh...
https://soundcloud.com/pendyala-pradeep/csywsvjfmwba

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