........... जब जब .. चुनाव आता है ......
लज्ज़त लुत्फ़ स्वाद अलग चाव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
वार्ता चर्चा गर्जना संवादों की
नित्य नए बयान विवादों की
उद्घोषणा वही पुराने वादों की
अधूरी पूरी मुरादों की
पक्की सड़क के वो कच्चे वादे
पूरे न हो पायें अबतलक आधे
बिजली, पानी मुफ़्त राशन
बस हम ही देंगे सुशासन
सबने सुने तो होंगे ये भाषण
तत्पर कुछ कर गुजरने को
देश ले लिए मर मिटने को
समस्त नेताओं में अजब समभाव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
गुनगुनाती गणतंत्र की हवाएं
ताक़त जुम्हूरियत की बताएं
‘आम’ यकबयक खास हो जाता है
सहसा हमें भी ये अहसास हो जाता है
न भेदभाव करते है न हैसियत पूछते है
रहनुमा आ आकर हमारी खैरियत पूछते है
गुंडे मोहल्ले के शराफत ओढ़ कर
बाहुबली भी मिलते है हाथ जोड़ कर
अचानक इतनी अहमियत देखकर
मूंछों पे ताऊ के तब बहुत ताव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
रैलियाँ, नुक्कड़ सभाएं
साइकिल, रथ, पद-यात्राएं
तादाद देखिये गिनिये मात्राएँ
क्या क्या देखे क्या क्या बताएं
होर्डिंग, बैनर, झंडे, पोस्टर
हर शख्स में दिखने लगा वोटर
जुलूस, प्रचार, गूंजते नारे
हर तरफ वही नज़ारे
गर कहीं कुछ भिन्न होता है
तो वो बस चुनाव-चिन्ह होता है
हाथ, हाथी, साइकल
हंसिया, झाडू, कमल
तीर, तराजू, घड़ी, दवात-पेन
कार, इंजन, पंखा, लालटेन
शंख, फल, फूल, पत्ती,
कहीं जलती हुई मोमबत्ती
दलों को हर चीज़ पे लगाना दांव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
कपा, सपा, बसपा
माकपा, तेदेपा, भाजपा
लोद, जद राजद, जेडीयू
जनता-दल ‘सेक्युलर’ और ‘बीजू’
द्रमुक, तो कहीं अन्ना-द्रमुक
फलां फलां अमुक अमुक
कुछ परोक्ष कुछ सम्मुख
ऊपर काश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस
कई गठजोड़ कई एलायन्स
कितने दल कितनी सेनायें
कहाँ तक गिने कहाँ तक गिनाएं
म.न.से., शि.से., शिरोमणि
गण परिषद्, सीपीआई, तृणमूल
आप दिलाये याद न जाऊं कुछ भूल
सोचने पड़े कुछ जहन में अपनेआप आ गए
खांसते हुए याद हमें ‘आप’ आ गए
यूं समझिये टोटल सियापा
लोकतंत्र का देखने तमाशा
हर शहर, हर कस्बा, हर गाँव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
भविष्यवाणियाँ, अंदेशे, prediction
बगैर इनके कैसा इलेक्शन
Survey, रायशुमारी, सर्वेक्षण
परत दर परत विश्लेषण
चैनलों पे चौबीसों घंटे चर्चा-संवाद
घुमा-फिरा के वही बात दिनरात
टीवी पे Psephology के पंडित
सबका अपना आकलन अपना गणित
क़यास, अनुमान अटकलों का दौर
अब हम क्या बताएं और
खुल्लम खोल ओपिनियन पोल
Entry से पहले Exit POLL
जो जी में आये सब बोल
न जवाबदेही न उद्देश्य
खेल में मस्त सारा देश
इस मैच में भी बहुत उतार चढ़ाव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
बजते ही चुनावी रणभेरी
बिना विलम्ब बिना देरी
सूरमा दिग्गज अपना कुनबा लेकर
महंगाई, बेरोज़गारी का मुद्दा लेकर
कुछ वज़ीर अपने पियादों के साथ
भाई भतीजे बेटे दामादों के साथ
मैदान में नज़र आने लगते है
ये देख थोडा हम घबराने लगते है
क्यों कि हम खुद ब खुद
भूलकर अपनापन सुख दुःख
धरम, मज़हब, जातों में
इलाके सूबे और जमातों में
बंटने लगते है
सोच के संकीर्ण दायरों में सिमटने लगते है
मुल्क, मुद्दे, मसाइल पीछे छूट जाते है
विषय विकास के सब नीचे छूट जाते है
समेटने वोटों को ही ये बिखराव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
दरमियाँ तंत्र और जन में
इस चुनावी चमन में
एक और चिड़िया होती है
सच बड़ी दिलकश ये मीडिया होती है
बगैर इनके पत्ता नहीं हिलता है
न हो कृपा तो सत्ता-सुख नहीं मिलता है
बदौलत इनके हर तुच्छ ओछे बयान ख़बर हो जाते
ख़बरिया चैनल देखते देखते मुखर हो जाते
मीडिया-फिक्सिंग, ‘पेड न्यूज़’ नए लफ्ज़ ईजाद हो गए
वैसे लोग कहते है कि हम आज़ाद हो गए
अब तो टीवी, प्रिंट के अलावा भी एक जरिया है
बड़ी तत्पर मुखर ये सोशल मीडिया है
यहाँ हर ख़बर का ख़ाक़ा सा खिंच जाता है
छपने से पहले ही अख़बार बिक जाता है
जन-भावनाओं विचारों का हर भाव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
ख़ुश होयें हम या रो लें
देखकर ये चुनावी फसलें
पता नहीं
क्यों होता है सोचा नहीं
और कभी किसी ने पूछा भी नहीं
दबा कर यूं ही वो बटन
तय कर दिया मुस्तकबिल-ए-वतन
फिर खुद कोसते है मुल्क की तक़दीर को
पीटते रह जाते है लकीर को
क्यों नहीं कभी जात, मज़हब से उठकर
सूबे, भाषा, बोली आदि इन सब से उठकर
किसी बेहतर अच्छे को चुनते है
छोड़कर झूठ सच्चे को चुनते है
शायद हमें ही नहीं दिखाना प्रभाव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ अमित हर्ष ~ ~ ~
https://soundcloud.com/pendyala-pradeep/fcjkvn0sn4kd
लज्ज़त लुत्फ़ स्वाद अलग चाव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
वार्ता चर्चा गर्जना संवादों की
नित्य नए बयान विवादों की
उद्घोषणा वही पुराने वादों की
अधूरी पूरी मुरादों की
पक्की सड़क के वो कच्चे वादे
पूरे न हो पायें अबतलक आधे
बिजली, पानी मुफ़्त राशन
बस हम ही देंगे सुशासन
सबने सुने तो होंगे ये भाषण
तत्पर कुछ कर गुजरने को
देश ले लिए मर मिटने को
समस्त नेताओं में अजब समभाव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
गुनगुनाती गणतंत्र की हवाएं
ताक़त जुम्हूरियत की बताएं
‘आम’ यकबयक खास हो जाता है
सहसा हमें भी ये अहसास हो जाता है
न भेदभाव करते है न हैसियत पूछते है
रहनुमा आ आकर हमारी खैरियत पूछते है
गुंडे मोहल्ले के शराफत ओढ़ कर
बाहुबली भी मिलते है हाथ जोड़ कर
अचानक इतनी अहमियत देखकर
मूंछों पे ताऊ के तब बहुत ताव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
रैलियाँ, नुक्कड़ सभाएं
साइकिल, रथ, पद-यात्राएं
तादाद देखिये गिनिये मात्राएँ
क्या क्या देखे क्या क्या बताएं
होर्डिंग, बैनर, झंडे, पोस्टर
हर शख्स में दिखने लगा वोटर
जुलूस, प्रचार, गूंजते नारे
हर तरफ वही नज़ारे
गर कहीं कुछ भिन्न होता है
तो वो बस चुनाव-चिन्ह होता है
हाथ, हाथी, साइकल
हंसिया, झाडू, कमल
तीर, तराजू, घड़ी, दवात-पेन
कार, इंजन, पंखा, लालटेन
शंख, फल, फूल, पत्ती,
कहीं जलती हुई मोमबत्ती
दलों को हर चीज़ पे लगाना दांव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
कपा, सपा, बसपा
माकपा, तेदेपा, भाजपा
लोद, जद राजद, जेडीयू
जनता-दल ‘सेक्युलर’ और ‘बीजू’
द्रमुक, तो कहीं अन्ना-द्रमुक
फलां फलां अमुक अमुक
कुछ परोक्ष कुछ सम्मुख
ऊपर काश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस
कई गठजोड़ कई एलायन्स
कितने दल कितनी सेनायें
कहाँ तक गिने कहाँ तक गिनाएं
म.न.से., शि.से., शिरोमणि
गण परिषद्, सीपीआई, तृणमूल
आप दिलाये याद न जाऊं कुछ भूल
सोचने पड़े कुछ जहन में अपनेआप आ गए
खांसते हुए याद हमें ‘आप’ आ गए
यूं समझिये टोटल सियापा
लोकतंत्र का देखने तमाशा
हर शहर, हर कस्बा, हर गाँव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
भविष्यवाणियाँ, अंदेशे, prediction
बगैर इनके कैसा इलेक्शन
Survey, रायशुमारी, सर्वेक्षण
परत दर परत विश्लेषण
चैनलों पे चौबीसों घंटे चर्चा-संवाद
घुमा-फिरा के वही बात दिनरात
टीवी पे Psephology के पंडित
सबका अपना आकलन अपना गणित
क़यास, अनुमान अटकलों का दौर
अब हम क्या बताएं और
खुल्लम खोल ओपिनियन पोल
Entry से पहले Exit POLL
जो जी में आये सब बोल
न जवाबदेही न उद्देश्य
खेल में मस्त सारा देश
इस मैच में भी बहुत उतार चढ़ाव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
बजते ही चुनावी रणभेरी
बिना विलम्ब बिना देरी
सूरमा दिग्गज अपना कुनबा लेकर
महंगाई, बेरोज़गारी का मुद्दा लेकर
कुछ वज़ीर अपने पियादों के साथ
भाई भतीजे बेटे दामादों के साथ
मैदान में नज़र आने लगते है
ये देख थोडा हम घबराने लगते है
क्यों कि हम खुद ब खुद
भूलकर अपनापन सुख दुःख
धरम, मज़हब, जातों में
इलाके सूबे और जमातों में
बंटने लगते है
सोच के संकीर्ण दायरों में सिमटने लगते है
मुल्क, मुद्दे, मसाइल पीछे छूट जाते है
विषय विकास के सब नीचे छूट जाते है
समेटने वोटों को ही ये बिखराव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
दरमियाँ तंत्र और जन में
इस चुनावी चमन में
एक और चिड़िया होती है
सच बड़ी दिलकश ये मीडिया होती है
बगैर इनके पत्ता नहीं हिलता है
न हो कृपा तो सत्ता-सुख नहीं मिलता है
बदौलत इनके हर तुच्छ ओछे बयान ख़बर हो जाते
ख़बरिया चैनल देखते देखते मुखर हो जाते
मीडिया-फिक्सिंग, ‘पेड न्यूज़’ नए लफ्ज़ ईजाद हो गए
वैसे लोग कहते है कि हम आज़ाद हो गए
अब तो टीवी, प्रिंट के अलावा भी एक जरिया है
बड़ी तत्पर मुखर ये सोशल मीडिया है
यहाँ हर ख़बर का ख़ाक़ा सा खिंच जाता है
छपने से पहले ही अख़बार बिक जाता है
जन-भावनाओं विचारों का हर भाव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
ख़ुश होयें हम या रो लें
देखकर ये चुनावी फसलें
पता नहीं
क्यों होता है सोचा नहीं
और कभी किसी ने पूछा भी नहीं
दबा कर यूं ही वो बटन
तय कर दिया मुस्तकबिल-ए-वतन
फिर खुद कोसते है मुल्क की तक़दीर को
पीटते रह जाते है लकीर को
क्यों नहीं कभी जात, मज़हब से उठकर
सूबे, भाषा, बोली आदि इन सब से उठकर
किसी बेहतर अच्छे को चुनते है
छोड़कर झूठ सच्चे को चुनते है
शायद हमें ही नहीं दिखाना प्रभाव आता है
मुल्क में जब जब हमारे चुनाव आता है
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ अमित हर्ष ~ ~ ~
https://soundcloud.com/pendyala-pradeep/fcjkvn0sn4kd
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