तुम्हें आंकना था किसी कोरेपन से
किसी अन छुए कच्चे पत्ते के तन पे
किसी दूब की नोक से था छुलाना
किसी ओस की बूँद से था भिगाना
मगर तुम कहाँ मिल सकोगी अजाने
वो अनजान पगडंडियां मिट गयी हैं
जिन्हें नाजुकी याद थी पगथली की
वो यादों के जंगल में गुम हो गयी हैं
वो बीते पलों को जो देती थी रस्ता
वो काफूर सी साँसों की खुश्बू हुई है
मगर आँखें फिर भी कभी बेखुदी में
तुम्हें तपती राहों पे देखें हैं अब भी...Ravindra Arora
https://soundcloud.com/pendyala-pradeep/tapti-raahen
किसी अन छुए कच्चे पत्ते के तन पे
किसी दूब की नोक से था छुलाना
किसी ओस की बूँद से था भिगाना
मगर तुम कहाँ मिल सकोगी अजाने
वो अनजान पगडंडियां मिट गयी हैं
जिन्हें नाजुकी याद थी पगथली की
वो यादों के जंगल में गुम हो गयी हैं
वो बीते पलों को जो देती थी रस्ता
वो काफूर सी साँसों की खुश्बू हुई है
मगर आँखें फिर भी कभी बेखुदी में
तुम्हें तपती राहों पे देखें हैं अब भी...Ravindra Arora
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